इब्न आलोचनाओं आमतौर का प्रतिनिधित्व करता है पहला, यद्यपि अल्पविकसित, ऐतिहासिक आलोचना
2.
ऐतिहासिक आलोचना के अन्तर्गत ही माक्र्सवादी और समाजशास्त्रीय आलोचना पद्धतियों को रखा जा सकता है।
3.
ऐतिहासिक आलोचना इस अल्लोचना पद्धति में किसी रचना का विश्लेषण तत्कालीन परिस्थितियों के सन्दर्भ में किया जाता है.
4.
विद्वानों को प्रेषित और जो ऐतिहासिक आलोचना की अनुमति दी है, जो इसे एक शर्त है कि इस्नद
5.
प्रकारान्तर से यह आलोचना समूचे अफ्रीका और सभी उत्तर-औपनिवेशिक समाजों के शासक वर्ग की और सामाजिक-राजनीतिक ढाँचे की ऐतिहासिक आलोचना बन गयी है।
6.
जब भी किसी नई कलाकृति की सृष्टि होती है तो पूर्ववत यह बात केवल ऐतिहासिक आलोचना की दृष्टि से ही नहीं, सौंदर्यशास्त्रीय सिद्धांत की दृष्टि से भी सही है ।
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जब भी किसी नई कलाकृति की सृष्टि होती है तो पूर्ववत यह बात केवल ऐतिहासिक आलोचना की दृष्टि से ही नहीं, सौंदर्यशास्त्रीय सिद्धांत की दृष्टि से भी सही है ।
8.
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा जो रिपोर्ट दी गयी है उस पर भारत के अधिकांश इतिहासकार पहले ही अनेक तथ्यपूर्ण आपत्तियां उठा चुके हैं और उस रिपोर्ट की ऐतिहासिक आलोचना कर चुके हैं।
9.
स्पष्ट ही बुद्धवचन के संग्रह और संरक्षण में नाना परिवर्तन और परिवर्धन अवश्य स्वीकार करने होंगे और उसके निष्पन्न रूप को एक दीर्घकालीन विकास का परिणाम मानने के अतिरिक्त ऐतिहासिक आलोचना के समक्ष और युक्तियुक्त विकल्प नहीं है।
10.
साहित्येतिहास को ऐतिहासिक आलोचना से स्वतन्त्र एक बौद्धिक अनुशासन के रूप में विकसित करने के लिए यह आवश्यक है कि रचना, रचनात्मक प्रवृत्तियों और कलात्मक बोध के उदय तथा द्वन्द्वात्मक विकास को एक गतिशील प्रक्रिया के रूप में विवेचित किया जाए और इस विकास प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले ऐतिहासिक यथार्थ से विकास प्रक्रिया के सम्बन्ध की व्याख्या भी की जाए।